ila kumar is a Hindi poet, writer and translator from India. She has also translated German poet Rainer Maria Rilke’s poems and Chinese Philosophy Tao Te Ching’s verses from English to Hindi. Her poems have been translated in several Indian languages including Bengali, Punjabi etc.
Monday, November 3, 2014
Monday, June 30, 2014
दीमकों की बस्ती
वह खुद से डरता है
एक अनजाने भय के आकाश तले अनाम चिंता से मन ही मन कांपता हुआ
बिलावजह बेबात नए कलहों में उलझ जाता है
मुख्य द्वार पर
पिता के बनवाए शानदार मकान के प्रथम खम्भे पर से
उसने
पिता का नाम बेझिझक मिटा दिया है
अपने नाम की जगमगाती तख्ती टाँग दी है
रुग्ण माता के हस्ताक्षर के बल पर
सारी संपत्ति का मालिक बन
तीज-त्योहारों पर बहनों को न्योता-पिहानी नहीं भेजता ..........
................
…………………
ऊपर से पुख्ता दिखती दीवारों के नीचे
दीमकों की पूरी बस्ती रहती है
उसे वर्तमान का डर नहीं है
वह भविष्य से डरता है
आनेवाले वर्षों में अपने पुत्र के बनाये
नए उसूलों की कल्पना
उसे सोने नहीं देती
वह खुद से ही डरता है
स्वप्न में किये गए दुष्कर्म की भाँति।
एक अनजाने भय के आकाश तले अनाम चिंता से मन ही मन कांपता हुआ
बिलावजह बेबात नए कलहों में उलझ जाता है
मुख्य द्वार पर
पिता के बनवाए शानदार मकान के प्रथम खम्भे पर से
उसने
पिता का नाम बेझिझक मिटा दिया है
अपने नाम की जगमगाती तख्ती टाँग दी है
रुग्ण माता के हस्ताक्षर के बल पर
सारी संपत्ति का मालिक बन
तीज-त्योहारों पर बहनों को न्योता-पिहानी नहीं भेजता ..........
................
…………………
ऊपर से पुख्ता दिखती दीवारों के नीचे
दीमकों की पूरी बस्ती रहती है
उसे वर्तमान का डर नहीं है
वह भविष्य से डरता है
आनेवाले वर्षों में अपने पुत्र के बनाये
नए उसूलों की कल्पना
उसे सोने नहीं देती
वह खुद से ही डरता है
स्वप्न में किये गए दुष्कर्म की भाँति।
दुपहरिआ के बाद
दुपहरिआ के बाद
समंदर के किनारे
सूरज , पेड़ ,पृथ्वी और स्वयंग समुद्र
सभी बदल डालते हैं रंग
क्यों बदलते हैं वे
अपने रंग-ढंग ?
उन्हें चाहिए थोड़ा लम्बा ' पॉज़ '
' पॉज़ ' यानि बीच की खाली जगह जैसा कुछ
हर व्यक्ति को तो नहीं
लेकिन बहुतों को यह चाहिए
थोड़ा ठिठकना , कुछ देर बैठ जाना
बैठकर बहुत सी बातों को एकदम से जा ना भूल जाना
भूल जाना स्वयं को, रिश्तों को,स्व के बीच की तहों को
भूलने के बाद फिर से चैतन्यता
और
आगे बढ़ चलने की तैयारी
यही है जीवन
थमना,ठिठकना ,गहरी सांस भरना
फिर चल पड़ना।
समंदर के किनारे
सूरज , पेड़ ,पृथ्वी और स्वयंग समुद्र
सभी बदल डालते हैं रंग
क्यों बदलते हैं वे
अपने रंग-ढंग ?
उन्हें चाहिए थोड़ा लम्बा ' पॉज़ '
' पॉज़ ' यानि बीच की खाली जगह जैसा कुछ
हर व्यक्ति को तो नहीं
लेकिन बहुतों को यह चाहिए
थोड़ा ठिठकना , कुछ देर बैठ जाना
बैठकर बहुत सी बातों को एकदम से जा ना भूल जाना
भूल जाना स्वयं को, रिश्तों को,स्व के बीच की तहों को
भूलने के बाद फिर से चैतन्यता
और
आगे बढ़ चलने की तैयारी
यही है जीवन
थमना,ठिठकना ,गहरी सांस भरना
फिर चल पड़ना।
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