वेदान्त का पन्ना
चित्त : कुछ बिम्ब
दिन प्रतिदिन की भागदौड़ के बीच कई बार ऐसा होता है कि अच्छे धुले कलफदार पकड़ें से सजा हमारा व्यक्ति त्व कांति बिखेरता दीख पड़ता है , शरीर भी तरोताजा , क्लांत नहीं .
लेकिन चित्त अशांत हो उठता है , किसी भी कार्य को करने की इच्छा नहीं होती . नकार भरी भावनाओं के रेलें दिमाग़ में चले आते हैं और अनमनी सी मनःस्थिति में हम कह उठते हैं कि _ " आज चित्त अच्छा नहीं है " या " मेरा चित्त खिन्न है " वगैरह, वगैरह .
ऐसे में किसी प्रबुद्ध व्यक्ति के मन में सहज रूप से एक प्रश्न आकार लेता है ... कि चित्त वास्तव में है क्या ? कैसा । वह चित्त ?
चित्त : कुछ बिम्ब
दिन प्रतिदिन की भागदौड़ के बीच कई बार ऐसा होता है कि अच्छे धुले कलफदार पकड़ें से सजा हमारा व्यक्ति त्व कांति बिखेरता दीख पड़ता है , शरीर भी तरोताजा , क्लांत नहीं .
लेकिन चित्त अशांत हो उठता है , किसी भी कार्य को करने की इच्छा नहीं होती . नकार भरी भावनाओं के रेलें दिमाग़ में चले आते हैं और अनमनी सी मनःस्थिति में हम कह उठते हैं कि _ " आज चित्त अच्छा नहीं है " या " मेरा चित्त खिन्न है " वगैरह, वगैरह .
ऐसे में किसी प्रबुद्ध व्यक्ति के मन में सहज रूप से एक प्रश्न आकार लेता है ... कि चित्त वास्तव में है क्या ? कैसा । वह चित्त ?