एक खुशनुमा दिन , नए कहानी संग्रह के बारे में सोचना अच्छा लग रहा है , जो जल्द ही प्रकाशित होने वाला है !
Parikalpana / परिकल्पना
ila kumar is a Hindi poet, writer and translator from India. She has also translated German poet Rainer Maria Rilke’s poems and Chinese Philosophy Tao Te Ching’s verses from English to Hindi. Her poems have been translated in several Indian languages including Bengali, Punjabi etc.
Wednesday, April 27, 2022
Monday, April 13, 2020
वेदान्त का पन्ना
वेदान्त का पन्ना
चित्त : कुछ बिम्ब
दिन प्रतिदिन की भागदौड़ के बीच कई बार ऐसा होता है कि अच्छे धुले कलफदार पकड़ें से सजा हमारा व्यक्ति त्व कांति बिखेरता दीख पड़ता है , शरीर भी तरोताजा , क्लांत नहीं .
लेकिन चित्त अशांत हो उठता है , किसी भी कार्य को करने की इच्छा नहीं होती . नकार भरी भावनाओं के रेलें दिमाग़ में चले आते हैं और अनमनी सी मनःस्थिति में हम कह उठते हैं कि _ " आज चित्त अच्छा नहीं है " या " मेरा चित्त खिन्न है " वगैरह, वगैरह .
ऐसे में किसी प्रबुद्ध व्यक्ति के मन में सहज रूप से एक प्रश्न आकार लेता है ... कि चित्त वास्तव में है क्या ? कैसा । वह चित्त ?
चित्त : कुछ बिम्ब
दिन प्रतिदिन की भागदौड़ के बीच कई बार ऐसा होता है कि अच्छे धुले कलफदार पकड़ें से सजा हमारा व्यक्ति त्व कांति बिखेरता दीख पड़ता है , शरीर भी तरोताजा , क्लांत नहीं .
लेकिन चित्त अशांत हो उठता है , किसी भी कार्य को करने की इच्छा नहीं होती . नकार भरी भावनाओं के रेलें दिमाग़ में चले आते हैं और अनमनी सी मनःस्थिति में हम कह उठते हैं कि _ " आज चित्त अच्छा नहीं है " या " मेरा चित्त खिन्न है " वगैरह, वगैरह .
ऐसे में किसी प्रबुद्ध व्यक्ति के मन में सहज रूप से एक प्रश्न आकार लेता है ... कि चित्त वास्तव में है क्या ? कैसा । वह चित्त ?
Tuesday, November 19, 2019
आज के दिन में क्या विशेष है , अगर यह लिखने बैठूं , तो सबसे पहले यह
कि
यह लाक हो गया ब्लॉग खुल पड़ा है आज . ( बेशक नेहा की सहायता से )
अभी तक हिमालय ट्रेकिंग की बात पूरी नहीं लिख पाई हूँ ,
हालाँकि वह यात्रा हर दिन याद रहती है , वह अनुभव , वह गहरी थकन ,
वह समय मेरे साथ चला है - डेनमार्क में , इटली और जर्मनी में - हर जगह . भारत लौट आने पर भी वह अनुभूति हर दिन याद आती है .
हिमालय देवता है.... . क्या इसलिए ?
यह तो एक कारण है ही , यह भी कारण है कि मैं स्वयं को विश्वाश दिलाना चाहती हूँ कि उतनी बड़ी यात्रा मैंने की है .
कि
यह लाक हो गया ब्लॉग खुल पड़ा है आज . ( बेशक नेहा की सहायता से )
अभी तक हिमालय ट्रेकिंग की बात पूरी नहीं लिख पाई हूँ ,
हालाँकि वह यात्रा हर दिन याद रहती है , वह अनुभव , वह गहरी थकन ,
वह समय मेरे साथ चला है - डेनमार्क में , इटली और जर्मनी में - हर जगह . भारत लौट आने पर भी वह अनुभूति हर दिन याद आती है .
हिमालय देवता है.... . क्या इसलिए ?
यह तो एक कारण है ही , यह भी कारण है कि मैं स्वयं को विश्वाश दिलाना चाहती हूँ कि उतनी बड़ी यात्रा मैंने की है .
Thursday, March 8, 2018
Tuesday, February 14, 2017
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